मुझे लोग कहते हैं दीवाना
इक पुराना, बिखरा हुआ
बेकार फ़साना
यकीं नहीं करते
उलझी हुई सी यादों
से बनी कहानियों का
मुझे वो मुझसे
जुदा करने का
मशवरा देते है
सौगात में अपनी
बेजान जिंदगी देते हैं
मैं कैसे छोर दूं
इन यादों को
जिनमे कैद किया है
दोस्तो के संग
बिताई शामो को
कैसे भूल जाऊ
गलियों में खेलना
मिट्टी में सने हाथो से
कंचो को बटेरना
रातों में मोहल्ले में
लुका छिपी खेलना
कैसे भूल जाऊ
वो बचपन का प्यार
गली के नुक्कड़ पे
उसका करना इंतजार
इक दीदार के लिए
जागना राते चार
नज़रों से बचते हुए
होले से थामना उसका हाथ
मुझे लोग कहते हैं दीवाना
इक पुराना, बिखरा हुआ
बेकार फ़साना
यकीं नहीं करते
उलझी हुई सी यादों
से बनी कहानियों का
– देव
Please like, comment and share.