मोहब्बत फिर हमें बेकार ना कर दे
मैंने इस वजह से, दूरी बना ली है
मर्ज ऐसा है ये, दर्द भी देता है
अपने से हमने दवा इसकी, बना ली है
शामे गुजरते है, अब यारो की महफ़िल में
सुबह, अपने से, इश्क़ फरमाते है
मगशूल रहते है, जमाने के लिए
रात में अपनों से हम, बतियाते है
देव