उस चाय की टेबल पर,
मैं बहुत कुछ खो आई।
जिंदगी अपनी,
उसके हवाले दे आयी।।
दो लब्ज़ ही तो बोले थे उसने।।
मैं इश्क़ समझ, अपना दिल वहीं छोड़ आई।।
अब भी जाती हु उसी टेबल पे अक्सर,
दूंडने टूटे दिलों के चंद टुकड़े।
काश, लब्जो को पूरा सुना होता,
तो आज, हाल हमारा ये ना होता।।
देव