हर एक लब्ज़ को…
कई बार खंगेलता हूं…
तुझे ढूंढने के एवज में….
नज़्में हजार लिखता हूं।
जाने, कौनसी महफ़िल,
किस दर पर दीदार हो तेरा।
तेरी एक झलक पाने को,
हर चौखट पे दस्तक देता हूं।।
तेरी खुशबू, आज भी ,
जेहन में बसी है मेरे।
यू ही नहीं जिक्र तेरा
नज्मों में है मेरे।
बस, इक बार,
दीदार ए यार हो जाए।
मेरा इश्क़
मेरी नज़्म से मिल जाए
देव