साजिशों में क्या जुर्रत, कि दूर हमको रखे।
रास्ते ही जुदा पकड़े है, तो क्या मिलेंगे कभी।।
तेरी ख्वाहिश में खोए, चलते चले गए इतना।
कब मंजिल छूट गई, कब मंजर बदल गया।।
देव
साजिशों में क्या जुर्रत, कि दूर हमको रखे।
रास्ते ही जुदा पकड़े है, तो क्या मिलेंगे कभी।।
तेरी ख्वाहिश में खोए, चलते चले गए इतना।
कब मंजिल छूट गई, कब मंजर बदल गया।।
देव