तुझपे हक जताने आया था।

तू, क्यूं रोती है, बिलखती है,
तड़पती है उसके लिए।
जो तुझे अपना बनाने नहीं,
तुझपे हक जताने आया था।

दिल में इश्क़ का समुंदर नहीं,
लालच का सैलाब लाया था।।

मत रो, जाने पर उसके,
उसकी याद में ना आंसू बहा।
जो तेरे आंसू की कीमत,
पैसों से लगाने आया था।।

नोच कर खाने की आदत,
बस नहीं होती है गिद्धो की।
इंसा भी नहीं कम इस काम में,
किसी से नहीं होते।।

वक़्त मिलते ही, नोच लेते है,
मिल जाए जो उनको।
आहें, सिसकियों की वो,
परवाह नहीं करते।।

देव

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