तुम थी ना, तो मैं बेफिक्र था
भगवान का भी शुक्र था
कि तुम थी ना
डैडी तो अक्सर दफ्तर में होते थे
रात की ड्यूटी होती, तो दिन में सोते थे
बहुत लाड थे करते, पर गुस्सैल भी मस्त थे
कहीं डांट ना पड़ जाए, रहते हर पल चुस्त थे
फिर भी, मैं छोटा को था, गलतियां हो जाती थी
डैडी की डांट से बचने को, बहने याद आती थी
दोनों बहुत लाड लड़ाती थी,
पर आपस में कभी कभी लड़ भी जाती थी
और आपसी लड़ाई की आंच, मेरे गाल सेक जाती थी
बड़ी थोड़ी छोटी थी, और छोटी चालाक
पर तालमेल दोनों का था बड़ा कमाल
दोनों मिल के चालबाजियां खेल जाती थी
बड़े भैया के हिस्से का, गाजर का हलवा
मिल के चट कर जाती थी
पूछने पर, एक दूसरे की तरफ अंगुलि दिखती थी
जीवन में बड़ा कठिन था
मम्मी ने भी किया बड़ा संघर्ष था
सोमवार से शनिवार, दूर गांव में
वीरान से हस्पताल में,
अपना कर्तव्य निभाती थी
और दोनों बहने, हम सब के लिए
मां का फ़र्ज़ निभाती थी
अपने छोटे छोटे हाथो से
गोल गोल रोटियां बनती थी
दिन में कई बार अपना हाथ जलती थी
पर उनके हाथ की दाल रोटी भी बड़ी भाती थी
56 भोगो का स्वाद एक पल में दे जाती थी
नवरात्री में कंजकों का रूप धर
पड़ोसियों से बस कन्याओं के खाने का प्रसाद लाती थी
अकेले, कैसे खाएं, हम भाई भी तो है घर पर
चुप चाप, बताए बिना किसी को
मुझे स्वादिष्ट पकवान खिलाती थी
जन्म तो दिया था मम्मी ने मुझे
पर, हमारे घर की मां मेरी बहने कहलाती थी
देव
Wow very nice….
Meri di bhi kuch aisi hi hai.