तुम सामने ही तो थे,
और मैं शर्मा रही थी,
झुकी नज़रों से,
तुझे टटोले जा रही थी,
पता नहीं, तुमने मुझे
देखा था या नहीं,
पर, मैं, बेसब्र
तेरे दीदार को
तरसी जा रही थी,
यूं तो, थोड़ा गुरूर भी है मुझे
खुदा गहरे रंग, डालना
शायद भुला था, जब
बनाया उसने मुझे,
लेकिन, बात तेरी थी
बड़े इत्मीनान से
सजाया खुद को,
सुना था, लाल रंग,
काफी भाता है तुमको,
तभी तो, तेरे इश्क़ का
आलम ये था
मेरा चेहरा भी,
हया से लाल था,
और तुम, करीब होकर भी,
काफी दूर थे,
क्यूं तुम इतना, मजबूर थे
बस, एक बार, मुझसे पूछा होता,
मेरा नाम, जुबां से लिया होता,
मैं तो पहले ही, हो चुकी थी तेरी,
काश! आलिंगन मुझे किया होता।।
देव