जीलू खुद को, यही आवाज निकलती है।

उमर निकल जाए, तो क्या,
बालों में चांदी हो जाए, तो क्या,
दिल मेरा, बच्चा ही रहेगा,
सपनों का, सिलसिला, चलता रहेगा,

कोशिशें मैंने भी करी,
जिम्मेदार हुक्मरान सी,
और जो बात बेपरवाह जिंदगी की है
कहां मिलती है सौगात, इत्मीनान की,

अब तो उमर, एक आंकड़ा सा लगती है,
मेरे हैं बढ़ते साल, मुझसे और जलती है,
हर पल के साथ, मेरी खूबसूरती और बढ़ती है,
जीलू खुद को, यही आवाज निकलती है।

देव

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