पंखों को फैला कर, उड़ चली मैं,

पंखों को फैला कर, उड़ चली मैं,
छोड़ कर रस्में सारी, उड़ चली मैं,
कब से था पड़ी, पावों में जंजीरे,
हो कैद से आजाद, चल पड़ी मैं,

लिया जहां ने हर कदम पर, इम्तिहान मेरा,
अपनों न दिया धोखा, करीबों ने नोचा,
जिसे हाथ दिया, हाथो में थामने को,
उसी ने हाथ काटने का, ना छोड़ा मौका,

बहुत, अब बहुत हो गया, सब्र अब टूटा,
और नहीं दे सकती, अपनी ख्वाहिशों को धोका,
अब बस, मैं चल पड़ी, राह पर जीने की,
अब नहीं परवाह, क्या होगा, क्यूं होगा।।

देव

Leave a Reply