अब तो नफरत भी, मेरी ना तू ले पाएगा

माना, छोड़ गया तू, मुझे मंझधार में,
किनारे थे बहुत दूर, फसी थी धार में,
मेरे अनमोल रतन थे, दोनों हाथो में,
पर था खुदा मेरा भी, मेरे साथ में,

माना, तूने कुछ और पाने की ख्वाहिश थी रखी,
पाने को सपने अपने, पल में तू चला गया,
नफरतें लाख, मेरे जेहन, दिल में जवां हुई,
आंसुओ में रातें सैकड़ों, यू ही गुजर सी गई,

माना, तू सोचता है, पा लिया, तूने बहुत,
पर जरा, इक बार, निगाह इधर भी कर,
आज, खुश हूं मै, तुझसे कहीं ज्यादा,
अफसोस जरा नहीं, है तुझपे अब तरस आता,

जो पाया है मैंने, तू कहा पाएगा,
मेरी परछाईं को भी, ना अपना कह पाएगा,
मेरे गुलसिता में, ना कदम अब तू, रख पाएगा,
अब तो नफरत भी, मेरी ना तू ले पाएगा ।।

देव

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