गिले, शिकवे, शिकायतें,
और ना जाने, कितनी ही बातें,
क्यूं घर कर जाती है,
जरा सी बात पर, ना जाने,
कितनी दूरियां बन जाती है,
कहने को तो अपना कहते है,
मगर, अपना मानते कहां है,
हर बात पे रूठना, आसान समझते है,
पल में रिश्ता, तोड़ जाते है,
समझते है नहीं, समझना जिनको नहीं,
समझ से परे, जिनकी समझदारी होती है,
तोलते है, दोस्ती को, तराजू में रिश्तों की,
नफा नुकसान सोच अपना, दोस्ती चलाते हैं,
अमीरी का पैसो से, जो हिसाब लगाते है,
जो शुक्रिया, माफी की, अपनों से उम्मीद जताते है,
जो नफरत को, मोहब्बत से, ज्यादा चाहते है,
वो बेचारे, अक्सर यहां, अकेले रह जाते हैं।।
देव