जबां तो वो भी मेरी ही बोलती है

जबां तो वो भी मेरी ही बोलती है,
पर आवाज में उसके, कुछ और ही बात है,
मदहोश, हो जाए, बस पल सुनने से,
मिला है उसको हुनर, और
सुनने को, बार बार, हर दिल बेताब है,

उसका, किस्सों को, सुनाना,
हर, वाक़िए को गौर से समझना,
अपनी ही बात पर, शर्माना,
अपना चेहरा, हाथो से छिपाना,
फिर जोर से हंसकर, अपना डर छिपाना,
फिक्र तो इसके माथे पर भी झलकती है,
लेकिन, वो अपने ही अंदाज़ से,
पर्दा भी करती है,
कहती है, उसे नाचना नहीं आता,
पर आग लगती है, जब थिरकती है,

उसका, वो सबको, चुप करना,
आंखे मूंद कर, लय को पकड़ना,
नशीली, आवाज में, मुखड़े को
ख़तम करना,
अंतरा ढूंढने को, इधर उधर तकना,
छूटे हुए सुर को झपटना,
बिंदास, भुला सबको,
आंखे बंद कर, हर शब्द को, रूप देना

तेरी तारीफ लब्जो को, गुरूर होगा,
खुदा ने तुझे, बड़ी तसल्ली से, बनाया होगा।।

देव

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