ये शाम की लालिमा

ये शाम की लालिमा, और तुम्हारा मुस्कुराना,
सर्द हवाओं का, तेरे घर से, टकरा कर आना,

मदमस्त कर देती है, फिज़ाओं को,
तेरा अहसास करती है, कुछ पल को

दूर कहां, तू है करीब ही यही कही,
बैठ तकता हूं, मैं राह तेरी,

माना शाम है, पर सुबह भी तो आएगी,
तेरे आने की, घड़ी कभी तो आएगी।।

देव

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