वाह! क्या बात थी, हाथ में चाय थी,
यारो से कुछ पल, मुलाक़ात थी,
बातो की बौछार थी,
रेडियो पर रफी की आवाज थी,
गीता दत्त के गानों पर,
निकली वो अहा थी,
सर्द हवाओं में, चले रास्तों में
मुंह से उड़ाते हुए भाप, धुएं सी,
अलग अंदाज़, कुछ अलग चाल थी,
और, मुमोस की शॉप पर,
मिली लड़कियां बिंदास थी,
बच्चो को मिली, खेलने की छूट,
खुशियां चेहरे पर अपार थी,
पिता को कौन पूछेगा,
जब दोस्तो के संग,
पी एस फोर गेम्स की बौछार थी,
बस, यूं ही निकल गई ये शाम,
ना शिकवे, ना शिकायत,
कुछ किस्से, कुछ बाते,
और बस हसीं ठहाको की बौछार थी।।
देव