चांद से नजर हटती तो चांद दिखता

मेरे महबूब, तेरी सूरत ही काफी है,
मेरे अंधेरे को, रोशन करने के लिए,

बस तू हटा दे, चेहरे से नकाब जरा,
दीदार ही तेरा चाहे, कुछ पल के लिए,

सोचती है, महफ़िल भी, ये रोशनी क्यूं है,
कहने को तो रात, अमावस की होती थी कभी,

चांद पूरा था, फिर क्यूं ना नजर आया,
चांद से नजर हटती तो चांद दिखता,

देव

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