ये तो वही सब्जी वाली आंटी हैं

This is what came to my thought last night, based on a lady used to come to our colony to sell vegetables, from a village around fourteen km away….

बात तो पुरानी है,
मगर लगा जरूरी बतानी है,
फिर उसी गांव में गया था,
जहां सालो मेरी मां ने काम किया था,
अचानक एक घर की ड्योढ़ी से,
एक चेहरा दिखा,
कुछ जाना पहचाना,
और जेहन में याद आ गया,
बचपन का जमाना,
ये तो वही सब्जी वाली आंटी हैं,
रोज कालोनी में सब्जियां बेचने आती थी,
सिर पर एक बड़ी सी, टोकरी उठाती थी,
वजन रहा होगा, लगभग बीस से तीस किलो,
सुबह से शाम तक, हर गली में,
सब्जी लो सब्जी, की आवाज लगाती थी,
मम्मा से पूछा, अरे ये तो वही आंटी है,
जो मुझे रोज अकर दुलारती है,
और बड़े प्यार से, कभी टमाटर,
तो कभी गाजर खिलाती है।
मम्मा ने कहा, हां बेटा, ये यही रहती है,
रोज गांव में खेत से, सब्जियां इकठ्ठा करती है,
दस बजे की लोकल ट्रेन से,
अपने शहर का सफर करती है,
दिन भर, सर्दी गर्मी की परवाह किए बिना,
रोज दस से बारह किलोमीटर,
अपने सर पर रख कर, गृहस्थी का बोझ,
घर घर सब्जियां बेचती है,
शाम, कभी कम कभी ज्यादा का,
गल्ला लेकर, फिर गांव को,
सफ़र करती है,
मेरी आंखे आश्चर्यचकित हो गई,
और मन ही मन, मेरी गर्दन,
श्रद्धा से झुक गई,
मगर एक प्रश्न कौंधा,
जब ये जाती है, तो बच्चे कौन पालता है,
जवाब में मां का इशारा,
उनके पति की ओर जाता है,
जो दिन में खेती में हल चलाता है,

किस्सा बस यही तक नहीं था,
जानने को अभी बहुत कुछ था,
मुझे देख कर, वो खुश हुई,
अपने पास बुलाया,
कुछ देर मेरी दुलार हुई,
हमे बैठाया, एक बच्चे को बुलाया,
सुन, काका को बोल, बाईजी आईं है,
चाय बना ला,
साथ में एक गिलास, ताज़ा दूध का ला,

तब छोटा था, मगर अब समझ में आता है,
आज भी, शादी करने पर,
लड़के वालों की तरफ से,
दहेज दिया जाता है,
आज भी, गांवो में, स्त्री पुरुष में,
बराबरी का नाता है।

देव

4 June 2020

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