बेतरतीब से बालो को बनाती वो जा रही थी,
जो सुलझे थे, उन्हें भी फिर उलझा रही थी।
जाने किन खयालातों में, खुद से बतिया रही थी,
जो गुज़र सा गया था, उसी की याद आ रही थी।
सोचा, भाग कर रोक लू उसे, कह दे हाल ए दिल,
अपने ही चक्रव्यूह में, फसें वो जा रही थी।
देव