फिर से रंगो से खेला जाए

बस, एक बार सोचती हूंँ,
इस रंग भरे त्योहार को,
कि आंखे भर आती है,
ज़हन मे, तेरी याद आती है।
आज यूं ही, बातो बातो में,
चलो होली मनाते है, निकल गया,
और नजरों से मेरी, कही थमा था
कब से, वो आंसू बह गया,
गला भर आया, और आवाज रूंध सी गई,
दोस्तो की नजरें, पल में मुख पर,
थाम सी गई,
सालो हो गए, मैने गुलाल है नहीं लगाया,
अब भी महसूस करती हूँ, उस रंग को,
जो भाई ने था, अपने हाथो से लगाया,
और बस, रंग का फितूर उतरा भी नही था,
भगवान ने था, उसे अपने पास बुलाया।
तब से, तब से बस, सोचती हुँ जब भी,
ये आंसू बह जाते है, हाथो में रंग
आते तो है, मगर आंसू से, धुल जाते है,
अब कुछ दोस्त मिले, तो लगा,
फिर से रंगो से खेला जाए,
तू तो नहीं, मगर तेरे होने का,
अहसास जिया जाए।
देव
24/02/2021, 1:29 am

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