जिंदादिली

इन इमारतों को क्या हुआ है,
शायद, जड़े खोखली है इसलिए,
एक एक कर ढह रही है।
रिश्तों में मिठास सी तो है,
मगर प्यार की कमी है इसलिए,
इसलिए दूरियां बढ़ रही है।
ख्वाब तो सब देख रहे है,
मगर ख्वाहिशें, ख्वाहिशें अपना
खेल, खेल रही है,
इंसानियत तो है मगर
ईमान की कमी है,
इसलिए तल्खियां बढ़ रही है।
लगे है सब दौड़ में,
ना जाने, क्या पाना है,
जीत की होड़ बढ़ रही है,
जिन्दगी, जिन्दगी तो अब भी है,
बस जिंदादिली गुमशुदा है,
दोस्ती, जाने कहां, गुम हो रही है
देव

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