हां वो इश्क़ कहीं खो गया है…

आज की आप धापि
और जमाने के शोर में
जाने दिलों को कुछ हो गया है
हां वो इश्क़ कहीं खो गया है

लब्जों में गड़ कर, हाल ए दिल
बड़े प्यार से, खत में भेजा करते थे
डाकिए से छीन, पड़ कर चिट्ठी,
यारो की तबियत का,जायजा लिया करते थे

पर अब जाने दिलों को कुछ हो गया है
हां वो इश्क़ कहीं खो गया है

बस, निकल आते थे, गलियों में उनकी
कि इक पल को, यार का दीदार हो जाए
कटी बॉल के दायरे में फसा कागज, फेक
शाम, 5 बजे, बगीचे में,
मिलने की जगह तय करते थे

वो उस बेंच पर बैठे, जमाने से नज़रे बचा
इशारों ही इशारों में बांते करती थी
और हम, जब तक वो थी, तकते थे
उसके जाने पर उसकी ही जगह बैठ ,
उसको महसूस किया करते थे

पर अब जाने दिलों को कुछ हो गया है
हां वो इश्क़ कहीं खो गया है

बड़ी खुशी हुए, जब अठारह का हुआ
पिताजी की बाइक, पर भी अधिकार हुआ
अब तो, कभी मोहल्ले से दूर, उससे मिलने जाता हूं
बाइक की पिछली सीट पर भी, उस बैठाता, घूमता हूं

बाइक पर भी एक मर्यादा होती थी
बस उसकी एक हथेली मेरे कंधे पर होती थी
बड़े ध्यान से, स्पीड ब्रेकर पार करता था
और गलती से कहीं और स्पर्श हो जाता
तो सॉरी बोलता था

पर अब जाने दिलों को कुछ हो गया है
हां वो इश्क़ कहीं खो गया है

तब प्यार सच्चा हुए करता था
इश्क़ में विश्वास हुआ करता था
उसको पाने कि जिद नहीं,
उस खुश देखना चाहता था


मिलने पर राजकुमार उस, खुद ही ने खुद को उसकी नज़रों से गिराया था
दबा ख्वाहिशों और गमो को अपने
उसकी शादी में, बारातियों को खाना खिलाया था
झलकते आंसुओ के सैलाब को रोक आंखो में
हस्ते चेहरे से, उसको विदा कर आया था

पर अब जाने दिलों को कुछ हो गया है
हां वो इश्क़ कहीं खो गया है

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