जाने वो यारी, कब की कहीं, खो सी गई

कभी यूं छोटे छोटे से, पड़ाव में भी तारीफें करते थे,
क्या बात है, बहुत अच्छे, कुड़ोस, अक्सर सुनाई देते थे,
वही तो था जो मेरे यार, अक्सर दिया करते थे,
सीढ़ी डर सीढ़ी, हम आगे बड़ा करते थे,

अब तो दस्तक भी, कभी होती नहीं, दरवाजों पर,
आता है डाकिया भी लेकर, पुलंदा शिकायतें भर,
अब नहीं मिलते है हम, यू चौराहों पर,
अब नहीं मिलती स्माइली, उन्हीं बातों पर,
हर कोई खो गया, मागशूल है और कहीं,
जाने वो यारी, कब की कहीं, खो सी गई।।

देव

14 june 2020

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