पैसे है, मगर दिल में जगह कम है।।

ये कविता आज सुबह की एक मुलाक़ात पर आधारित है।
पैसे है, मगर दिल में जगह कम है।।
सर्दी की ठिठुरती सुबह,
और नई दिल्ली का रेलवे स्टेशन,
यूं तो अक्सर, ओला या उबेर होती है,
मगर, आज लगा, क्यूं ना,
ऑटो मे थोड़ा घूमा जाए,
ठंड का मजा लिया जाए।
चहल कदमी कर, मेन रोड तक आया,
इधर देखा उधर देखा, उसने बुलाया,
दुबला पतला सा था,
मगर चेहरे पर थी चमक,
कहां जाना है, बैठिए ना सर,
जो मीटर से आए, लेंगे वही बस,
और फिर भी, लगे ज्यादा है,
तो दिल से जो दोगे लूंगा,
एक बार भी अफसोस नहीं करूंगा।
उसकी, यही बात, दिल को छू गई,
और मेरी मंजिल की तरफ,
मेरी यात्रा शुरू हो गई,
बांतो का सिलसिला मैंने ही शुरू किया,
दिल्ली का हाल चाल पूछ लिया,
सर, पता नहीं, किस बात कि डिमांड है,
न्यूज़ तो नहीं देखी, मगर सुना है,
कल हुआ बुरा हाल है,
मगर, ये तो चलता ही रहता है,
हमे तो कॉरोना से भी डर नहीं लगता है।
गरीब है ना, दिन रात मेहनत करनी पड़ती है,
जुकाम खांसी तो हर तीसरे दिन लगती है,
और क्यूं ना करूं, गर मै ही बैठ जाऊंगा,
तो आप सबको मंजिल तक कैसे पहुचाऊंगा।
तभी एक मुर्गो से भरी गाड़ी दिखाई दी,
उसने सरकार की दुहाई दी,
सर, जब इतना बर्ड फ्लू फैल रहा है,
तो खुले आम चिकन क्यूं बिक रहा है,
मगर, कुछ अच्छा भी हुआ,
जो इस बहाने भाव कम हुआ,
अब हम गरीब भी आलू की जगह,
चिकन खा लेते है,
वरना, एक टाइम के नोन वेज मे,
दस दिन का राशन ला पाते है।
मैं उसकी बातें मुस्कुरा कर,
सूने जा रहा था,
अक्सर बीच बीच में,
हुंकारा लगा रहा था,
बहुत कुछ मिल रहा था सीखने को उससे,
यूं ही नहीं, वो बोले जा रहा था।
तभी उससे लॉकडाउन का हाल पूछ डाला,
उसकी बातों ने, मुझे हिला डाला,
सर, सब बंद हो गया था,
बीवी गावों में, और में बच्चों के साथ,
यह फस गया था,
सोचा, कुछ दिन में, शहर खुल जायेगा,
मगर, क्या पता था, खाना भी नसीब नहीं हो पाएगा,
एक दिन, इसी ऑटो मे, बैठाया बच्चो को,
साथ मे लिया एक बूढे चाचा, और पड़ोसी की फ़ैमिली को,
निकल लिया गांव की सड़क पर,
सुन दांस्ता, जाने दिया पुलिस ने मुझको,
मगर, हर मोड पर, कई राहगीर थे,
कोई साइकिल, कोई रिक्शा,
कोई पैदल ही जा रहे थे,
चेहरों से, उनके गम टपक रहे है,
लोग उन्हें पसीना समझ रहे थे,
तब लगा, काश मेरे पास कुछ और ऑटो होते,
बैठा लेता सबको, कुछ तो दुआ देते।
बस वही मंजर, नहीं है भुला जाता,
आज भी, उन भूखे गरीब चेहरे,
याद कर, हूंँ रात में उठ जाता।
तब तलक मेरी मंजिल आ पहुंची थी,
मगर ज़हन मे, एक आवाज उठी थी,
तू गरीब कहाँ, गरीब तो हम है,
पैसे है, मगर दिल में जगह कम है।।
पैसे है, मगर दिल में जगह कम है।।
देव
08/02/2021, 10:40 pm

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