उन्हीं गलियों से,

तुम्हे बताता हूं,
आज उन्हीं गलियों से,
फिर मुलाक़ात हुई,
जिनमे, खलेने की मेरी,
कभी शुरुआत हुई,
बदला है, पर नहीं ज्यादा कुछ,
ये रास्ते आज भी वैसे ही है,
जैसे, बचपन में,
पैदल पैदल,
स्कूल जाते वक़्त होते थे,
बस, अब वो गोमती आंटी नहीं होती,
जिन्हे प्रणाम कर माथे पर,
एक प्यार का चुम्बन लेते थे,
या वो अम्मी नहीं दिखती,
जिन्हे सलाम कहने पर,
हजार दुआए मिलती थी,
वो दुकान तो आज भी है,
पर अब वहां, नारंगी वाली
5 पैसे में 5 वाली टाफी नहीं मिलती,
और वो साइकिल की दुकान भी
वही है, बस अब, छोटी साइकिल,
जिसे अद्दे कहते थे,
किराए पर नहीं मिलती,

किसी ने जिस्म बदल लिए,
किसी ने कपड़े,
लेकिन, गालियां आज भी वैसी ही है,
और हां, मुझसे आज भी बांते करती है
कह रही थी, बड़े अरसे बाद आए हो,
कहां थे, वो वक़्त जरा फिर से लाओगे,

मैंने यूं ही पूछा, क्यूं, वो बोली

आजकल, कहा कोई मुझे सुनता है,
बस हर कोई अपने में जीता है,
वो खाला, जो तुम्हे पान खिलाती थी,
बस, कुछ पखवाड़े पहले,
उन्हें अल्लाह का बुलावा आया था
पर, दो दिन तक, इंसानों को,
कोई अंदाजा ना था,
अब कोई उस तरह नहीं गुजरता,
अनजान लोगों को, सलाम नहीं बोलता,
अचानक मुझे ख्याल आया,
अम्मी तो आज भी यही कहीं रहती है,
इस दीवाली कुछ अच्छा किया जाए,
गोमती आंटी और अम्मी से मिला जाए।।

देव

Leave a Reply