तू अनजान सही

तू अनजान सही,
पर पहचानी लगती है,
क्यूं तुझसे क्यूं मेरी,
पुरानी यारी लगती है,

क्यूं, बार बार, तुझे,
देखने को दिल करता है,
क्यूं, हर बार, मेरा रास्ता,
तेरे करीब से गुजरता है,

तेरे चेहरे का, हर भाव,
तेरी चंचलता कहता है,
तेरी आंखो में मुझे,
तेरा भोलापन दिखता है।।

पहली मुलाक़ात है, तुझसे मेरी,
पहली बार तुझे देखा है,
पर सुकून मिला मिल कर तुझसे,
ना जाने कैसा रिश्ता है,
ना जाने कैसा रिश्ता है।।

देव

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