बेतरतीब से बालो को बनाती हुई,
वो दिखती है अक्सर, मुस्कुराती हुई।
शब कहूं, या शराब कहूं उसे,
शबाब उसका, करता है मदहोश मुझे।
कहीं यूं ही ना, गुज़र जाए, शाम मेरी,
इक बार यार दीदार, मिल जाएं मुझे।
शुक्र खुदा को, तराशा है, जो उसने तुम्हे,
फरियाद खुदा से, यारी तेरी मिल जाए मुझे।।
देव
11/09/2020, 9:52 pm