यूं ही, भटकती रही, जिन्दगी मेरी

ना मिला, ख्वाबों का कारवां मुझे,
ना नींद ही मेरी आंखो, से मिल पाई।

यूं ही, भटकती रही, जिन्दगी मेरी,
ना चैन से कुछ पल, मैं बैठ पाई।

यूं तो, हुजूम है हर तरफ मेरे,
मगर, उस सा कोई, ना मैं ढूंढ पाई।

कहां, बातें करते हूं, इश्क़ की यहां,
चार दिन दोस्ती, तो निभ ना पाई।

देव

16/10/2020, 12:02 am

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