मगर, कुछ तो है ना।
ये जो सिलसिले है ना,
उन्हें यू ही चलने देना,
माना कुछ गलतफहमियां है,
मगर कुछ तो है ना।
शिद्दत से जिन्हें चाहा है,
और उन्हें शिद्दत का
हिसाब चाहिए,
कौन लिखता है
मोहब्बत का हिसाब,
और उन्हें वो हिसाब चाहिए।
माना, कुछ उधार है
मगर कुछ तो है ना।
लिख डाली है नज्में हजार,
बस उनके एक दीदार पर,
कर दी, कितनी ही रातें कुर्बान,
उनके एक ख्वाब में,
और उन्हें ख्वाब की,
मलिका का नाम चाहिए,
माना, मेरे इश्क़ पर शक है,
मगर, कुछ तो है ना।
चैन से तो वो भी नहीं,
सो पाते है अक्सर रात में,
निकल आता है नाम मेरा,
अक्सर किसी बात पे,
जिन्दगी के इस सफर में,
दोस्त मुझ जैसा चाहिए,
माना, उन्हें इश्क़ नहीं,
मगर, कुछ तो है ना।।
देव
27/10/2020, 8:41 am