माना, वक्त गुज़र गया है,
मगर, ये दिल, अब भी वही खड़ा है,
जिस मोड़ से तुम गुजरती थी,
अक्सर, ख्वाबों में, फिर तुमसे मिलता है।
करीब तो हो तुम, मेरे काफी,
कि छू तुम्हे कभी भी सकता हूं,
मगर, अब भी, वक्त फुर्र हो जाता है,
जब बैठ, एकटक, बस तुम्हे तकता हूं।
यूं तो, फिसलती हुई सी है जिन्दगी,
खुशनुमा है हर रात, और दिन भी,
मगर, कुछ पल की, तुमसे दूरी और,
ये दिल, तुमसे मिलने की ख्वाहिश करता है।
थाम रखा है, ये जो हाथ तुम्हारा मैंने,
बस यूं ही, हर राह से गुजर जाना है,
ख्वाहिशें वो तेरी, और सपने जो मेरे,
साथ साथ, सच सब, करते जाना है।
देव
12/12/2020, 7:56 pm