सर्द मौसम है, मगर तपिश अब भी है,
मेरे ख्वाबों में, ललक अब भी है।
टूटी तो कई बार हूँ मैं, मगर टूट कर,
फिर जुड़ना मुझे आता है,
बहाव तेज सही, तैरना अब भी आता है।
कहने को तो चालीस, बहुत लगते है लेकिन,
इस दिल को, चहकना अब भी आता है।
अब भी, वही चमक है आंखो में मेरी,
गुजरती हूंँ राहों से, ध्यान सबका यही जाता है।
देव
31/12/2020, 3:34 am