मैं अब भी, वही खड़ी हूंँ,

वो बढ़ गया आगे, मगर फिर भी
रुक रुक कर देखता है,
हाथ तो नहीं बढ़ाता मगर,
अब भी हर बात पर टोकता है,
जनता है, पा नहीं सकता मुझको,
मगर मेरे हाल पर भी,
नहीं छोड़ रहा।
और मैं अब भी, वही खड़ी हूंँ,
शायद, उसके लौटने का,
इंतज़ार कर रही हूंँ, इक आस,
इक आस के साथ, अब भी
जी रही हूंँ, कुछ नहीं बचा है,
मगर शिकायतें ही अपनी,
समझ रही हूंँ, कुछ है,
जो अब भी मुझे बढ़ने की,
कह रहा है, जानती हूंँ,
वो नहीं है, जो मुझे चाहिए
फिर भी, उससे ये दिल,
वही बातें कर रहा है।
देव
31/01/2021, 12:07 pm

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