इक शाम की कहानी

मेरे एक पल के भटकने ने
मुझको क्या सजा दी है
सही रास्ते पर चलते मुसाफिर को
मंजिले भटका दी है

अफसाने और फलसफे
सुनते सुनाते रहे शाम पूरी
और रात के एक पहर ने
दिमाग खलबली मचा दी है

लगा, कुछ नहीं होगा, बस यूं ही
बिता देंगे कुछ पल साथ में
पर रोका क्यूं नहीं लहरों को
जब थामा हौले से उसके हाथ को

सिर्फ लबो को कहानी, बताई लबों ने
हाथो से पड़ा हुनर रब का
फिर भी गिला है, अफसोस है
कुछ मुझको, कुछ उसको

उसके पाक इरादों को,
क्यों बेतरतीब कर दिया मैंने
कुछ पलो की खुशियों के वास्ते
क्यू सोचने पे मजबूर कर दिया हमको

देव

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