बरगद का पेड़,
कितना बेतरतीब खड़ा होता है
जहा भी देखो अभी भुजाएं
फैलाए होता है
जैसे, बुला रहा हो
हर मुसाफिर को
कुछ पल बिताने को
भागदौड़ भरे सफर से भरी
थकान मिटाने को
जड़े अपनी यहां वहां
गाड़ते हुए
कभी किसी के हरे भरे
बाग उजड़ते हुए
चमन के फूलों को
मसलते हुए
बस बड़ता रहता है
यू ही मचलते हुए
छाव में अपनी सबको
लेने की होड़ करता है
पर कुछ पल के आराम
के अलावा कुछ नहीं देता है
लोग नहीं बना सकते
इसे रौनक अपने घर की
जिस घर में उगता है
उसी को उजाड़ देता है
लेकिन पसंद है बहुत
लोगो को बरगद का ये पेड़
जहा भी मिलता है
लोग खुश होते है
कुछ देर ही सही
उसकी छाव में सोते है
कुछ देर ही सही
उसकी छाव में सोते है