काश, हम भी कुछ कमिने होते

तेरी गलिए में फिरते
तुझे कुछ इशारे करते
पर क्या करे
शराफ़त ही मार देती है
काश, हम भी कुछ कमिने होते

हर सुबह, निकाल जाते
कुछ बन ठन कर
करके शर्ट को इन
जचा के बालो को
पोलिश कर जूतों को अच्छे से
लगा के काला चश्मा
बालो में जो थोड़ी सी सफेदी है
उसको हल्के से, काला रंगा
लेकर बेटे की लैदर की जैकेट
देवानंद की स्टाइल चुरा

पर क्या करे
शराफ़त ही मार देती है
काश, हम भी कुछ कमिने होते

तेरे ऑफिस को निकालने का
तेरे रास्ते में इंतजार करते
तेरी कार के पीछे
अपनी कार दौड़ाते
अपने बालो में अंगुलियों फैराते हुए
तेरे पीछे पीछे आते
लिफ्ट में तुझसे पहले पहुंच
सारी फ्लोर के बटन दबा
तेरे आने तक लिफ्ट रोक पाते

पर क्या करे
शराफ़त ही मार देती है
काश, हम भी कुछ कमिने होते

तेरे घर की बिजली बंद कर
फ्यूज लगाने के बहाने तेरे घर जाते
कुछ तेरे ड़ेडी से दोस्ती करते
उनके साथ शाम को दो पैग लगाते
मां हाथ का खाना खाते
इसी बहाने से कुछ और पल
तुझे निहारता,
तेरी शाम का गवाह बन जाता
टेडी नजरो से तुझ पी डोर डालता

पर क्या करे
शराफ़त ही मार देती है
काश, हम भी कुछ कमिने होते

करीब तेरे आने के लिए
तेरे बच्चो के कुछ बटर लगता
थोड़ा उनके साथ खेलता
थोड़ा इन्हे घूमता
पता है, बड़ा मुश्किल है उन्हें सम्हालना
पर, कभी कभी मैं भी उनको
मस्त गोली दे जाता
उन्हें तुझसे लेने के बहाने
तेरे करीब आता, तेरा स्पर्श पता
और उनके बहाने, तुझे
I love u बोल पाता

पर क्या करे
शराफ़त ही मार देती है
काश, हम भी कुछ कमिने होते

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