इश्क़ क्या है, समझने की कोशिश में
उमर तमाम निकाली
पर, हर बार, जो सोचा, जो समझा
उससे, अलग पाया
कभी फ़र्ज़, तो कभी मर्ज बना
कभी, बेगैरत सी सिसकियों में पाया
दामन, अपना साफ रखने के वास्ते
कभी, रास्ते में कहीं, छोड़ गया
मिल जाता है, अब भी, रास्ते में अक्सर
पर, साथ में चलते, देखते किसी और को पाया
सुकून दुंडने चले थे , कुछ कदम
बेपनाह दर्द का समंदर, नजर आया
बेगैरत बेपरवाह रहना, खुशगुवार लगा
कच्चे अधूरे रंगो से, स्याह को कुछ हसीं पाया