फ़र्ज़ निभाते निभाते
कर्जदार हो गई हूं
मैं, जो कभी मनमौजी थी
बेजान हो गई थी मैं
दिलो को जीतने की होड़ में
खपती रही हरपल
दीवारों की सर्द रंगत से
बेरंग हो गई थी मैं
गैरों की गैरतो,
अपनों का लिहाज
कब तक करू,
इन्हीं की कातिल निगाहों से
बेगैरत हो गई थी मैं
अब ना इश्क़ का जज्बा है
ना मोहब्ब्त का फितूर
मैं और मेरी जिंदगी
जी भर कर खुशी
दोस्तो की महफ़िल
और खुशहाल दिल
कभी कभी पीने लगी मैं
हां, जिंदगी जीने लगी हूं मैं
हां, जिंदगी जीने लगी हूं मैं
देव
Super se uper