ख़ुदा से मिलवाएगी

कुछ आहट सी, कहीं से सुनाई दी
जाड़ों की स्याह रातों में,
और तभी, कुछ सनसनाती सी,
एक ठंडी हवा का सा झोका
कुछ इस तरह से
मेरे जिस्म को छू कर निकला
मेरे कानो के कुछ पास से
जैसे, कुछ कहना चाहता हो।

बदन में, एक सहर सी उठी,
और महसूस किया,
एक ठंडा अहसास
जैसे के कोई, मेरी गर्दन पे
बर्फ मल के चल दिया हो

नींदों को तिजोरी में डाल
कुछ घबराते हुए अहसास
समेट कर हिम्मतो की गठरी
मैं कमरे से बाहर निकली

हां, अब थोड़ी तो राहत थी
शायद, वो कमरा, उसकी रवायत थी
हर आने वाले की शिनाख्त वो करता है
किसी दिन उसकी मेहबूबा,
फिर उसके गरीब खाने पे आएगी
वीरान पड़ी उसकी रूह को
ख़ुदा से मिलवाएगी

देव

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