मिल पाएगी जिंदगी….

फिकरे जहां भर की, झोली में आती हैं हर सुबह।
शामे कब हसीं बनाएगी, हसाएगी जिंदगी।।

स्याह रात में, वीरान दीवारों को घूरती हूं मैं।
जाने कब रोशन करेगी, चिराग़ जलाएगी जिंदगी।।

तन्हाई का आलम, कतर भर कम नहीं होता।
जाने कब मुकम्मल जहां, बसाएगी जिंदगी।।

फ़र्ज़ और कर्ज, के बीच में गुजर जाएगी जिंदगी।
जाने कब, मुझे मेरी, मिल पाएगी जिंदगी।।

देव

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