क्यू मंदिर, क्यूं मस्जिद, क्या चर्च, गुरुद्वारा
क्या मूरत, क्या सूरत, क्या इंसान तुम्हारा
क्यूं दुंडे तू मुझको पगले, यहां वहां हर जगह
याद कर मूंदे आंखे अपनी, मेरा घर है मन तेरा
रचा रमा, मैं हर कण कण में
माने ये जाग सारा
फिर भी करता फिरे, है तीरथ
कैसा डोंग है पाला
मुझको पाने का जज्बा, गर
हो तुझमें कण भर भी
रख ले हंसी तेरे गालों पे
कुछ के गम कम तू कर दे
देव