तू स्त्री है, पर मर्द से कम नहीं हैं…

तेरी हाथो में, कपकपि नहीं है
तेरी बातों में, घबराहट की कमी है
तू रातों में निडर निकलती है राहों पे
तेरी आंखो में, दर्द है, पर आंसू नहीं है

तू स्त्री है, पर मर्द से कम नहीं हैं

तू फिक्रमंद है,
तेरे माथे की शिकन बोलती है
कहानी तेरी रातों की,
सन्नाटो को चीरती हुई
आती हर पुकार, बताती है
तेरे जज्बातों की दासता।
और तेरी जुबां, जरा सी भी,
लड़खड़ाती नहीं है

तू स्त्री है, पर मर्द से कम नहीं हैं

तेरे पल्लू में बंधी गाठ,
तेरी साड़ी में, दूर से दिखती वो सांठ
तेरी चोटी में से झाकते पके बाल
तेरी हथेलियों पर जले से, पड़े लाल निशान
तेरे सैंडल्स के घिसे तलवे
तेरी एड़ियों के फटे घाव
तेरी रोजाना की लड़ाई दिखाते है
पर तू अडिग सी खड़ी दिखती है हर पल

बेकार सवालों पर कोई अफसोस नहीं है
तू स्त्री है, पर मर्द से कम नहीं हैं

Leave a Reply