मेरा आत्मसम्मान ना छीनो…

ये लो, फिर चालू हो गया,
मेरी पूजा का चक्कर।
जो बेटियों को जन्म से पहले,
मारने की बातें करते है।
वहीं इन नौ दिनों में,
मुझे खुश करने के लिए,
कंजको को दुंडते है।।

कब तक, ये दोगली बातें करते रहोगे।
स्त्री को स्त्री नाम पर छलते रहोगे।
मैं बस मर्दों की बातें नहीं कर रही।
यहां माता, सास, बहन भी है।
जो स्त्री होकर, स्त्री को नीलाम कर रही है।।

सच बताओ, आखिर चाहते क्या हो तुम।
मेरी बली चड़ा, मुझसे ही वर मांगते हो।
रास्ते में चलती हूं, तो ताड़ते हो।
और मंदिर में मुझपर ही माला चड़ाते हो।

बहुत हो गया ये खेल, अब बदलाव लाना है।
रस्में, रिवाज, जो दोगला बनाती है,
सबको बदले जाना है।
बंद कर दो पूजा मेरी,
ना कंजकों को बुलाना है।
बस इतना प्रण कर लो,
मैं जब राह से गुजरती हूं।
ना ताको मुझे, ना छेड़ो,
बस सम्मान की भूखी हूं।
मेरा आत्मसम्मान ना छीनो।
मेरा आत्मसम्मान ना छीनो।।

देव

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