तेरे दर्द की दांस्ता…

तू बोलती रही,
मैं सुनता रहा,
तेरी आंखो से,
छलकने की कगार पर,
थे जो आंसू,
बस, उन्हें इक तक घूरता रहा।

जैसे, ढूंढ़ती सी
फिर रही
आंखे तेरी
मुझको यहां
कब मिलने पल फुरसत के
और खोलेगी
दिल तेरा

तेरे हर अल्फ़ाज़
और तेरे माथे पे
बनने वाली सलवटें
तेरे हाथो के इशारे
तेरे चेहरे के भाव
सब मिल कर
बता रहे है
तेरे दर्द की दांस्ता।

देव

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