मेरी फिक्र,
तू ना कर,
बेकार की बातों में,
ना गवां वक़्त।
कुछ खुद का सोच,
कब तक यू ही,
जिद पे रहेगी,
कब तक,
अपने वजूद को,
खुद से दूर रखेगी,
कब तक,
जमाने के इशारों पर,
अपना मुकद्दर,
तय करेगी,
मेरी फिक्र,
तू ना कर,
मैं तो मुसाफिर हूं,
अभी यहां,
कल क्या पता कहां,
चला जाऊंगा,
और क्या पता कब,
खुदा की महफ़िल में,
नज़्म अपने सुनाऊंगा।
देव