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जैसे सागर को गागर का फर्क नहीं होता
ग़म इतने सह चुके, कि अब दर्द नहीं होता

देव

अभी ना मंजिल का पता
ना ख़्वाब ही देखता हूं
अनजान रास्तों में,
भटकना नापसंद है मुझे


देव

ख्वाहिशें और तमन्नाएं,
इस दिलों दिमाग में भी है बसी

बस, वक़्त का है इंतजार
उड़ना हमे भी है

देव

मुझे मैं ही रहना है
मैं तुम क्यूं बन जाऊ
मेरे धारणा, मेरे विचार
यूं ही, क्यूं मैं बदल जाऊं

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