वो बैठी, मुस्कुरा रही थी
कुछ बड़ बड़ा रही थी
मैं, जरा पास जाकर, सुनने लगा
उसकी हर सांस से, खुश रहना, आवाज आ रही थी
घर बहुत बड़ा,
बेटे का भी कमरा रखा है सजा
लगता है, रहता है दूर, सात समंदर पार
अब तो याद भी नहीं,
कब आया था पिछली बार
पर उस अब भी यही लगता है
अरे, सुबह ही तो दफ्तर गया है
खाना बना रखा है
शाम को वो थका मांदा घर आएगा
बाहर से ही पुकरेगा,
मां, भूख लगी है, कुछ खिला दो
इसीलिए वो आज भी रोज सुबह उठती है
नाश्ता, लंच, डिनर वक़्त पे तैयार करती है
अपने हाथो से उसे खिलाती है
बालों में अंगुलियों फेर आज भी सुलाती है
रात में अक्सर उठ जाती है
हर दस्तक पर, मुझे उठाती है
जरा देखना, मेरा लाल आया होगा
छोड़ो, तुम्हे कोई परवाह नहीं
बाहर, बारिश है, भीग गया होगा
तू जरा heater on कर दो
मैं टॉवेल निकालती हूं
पगली, किस दुनिया में रहती है
जागते हुए सपने देखती है
वो दूर नहीं, बहुत दूर जा चुका है
अपनी नई दुनिया बसा चुका है
नहीं, वो कहीं यूएस या कनाडा में नहीं
यही, इसी देश में ही रहता है
पर, फुरसत में नहीं जीता है
बस कभी, आजकल मेरी फोन पर बात हो जाती है
मीटिंग में हूं, या ड्राइव कर रहा हूं
चंद पलों में, बात खतम हो जाती हैं
और वो पहली, जाने क्या समझती है
मैंने भी अब समझाना बंद कर दिया
वो खुश है अपने ख्वाबों में
मुझे भी इससे सब्र है
कम से कम अब रोटी तो नहीं है
अब उसे मां होने का अफसोस नहीं है
देव