बारिशें, थोड़ा भिगो गई,
थोड़ा रुला गई।
आज, इस मौसम में,
फिर उसकी याद आ गई।।
बड़ी शिद्दत से करते थे,
मौसम के भिगोने का, इंतजार।
जब बरसता था सावन,
हो जाता था दिल बेकरार।।
अब बरस भी रहा है,
तो कुछ कमी सी है।
बाहों में वो नहीं,
नाही वो तपन सी है।।
फिर भी, निकल ही गया,
चख तो लू, स्वाद,
टपकती नन्ही बूंदों का।।
क्यूं रहूं तन्हा,
क्यूं अधूरे ख़्वाब रहे।।
क्या है गुनाह इस,
मासूम मौसम का।।
देव