मेरी मां थी

Below is a truth… A very small part of struggle of my mom… For us…

जब भी मैं परेशा होता था
हरदम, मेरे बालो में उसका हाथ होता था
जब भी, मेरी तबियत नरम होती थी
वो वहीं आस पास होती थी

ऐसा नहीं, कि वो रहती थी हर वक़्त करीब
हमको दे सके एक सुंदर भविष्य
इसीलिए उसने अपना आराम छोड़ा
जो कभी, पली थी नाजो से
निकल पड़ी, अंगारो भारी रही पे
और अपना घर छोड़ा

आज भी याद है, जो डरती थी जरासी आहट से
सुनसान वीरान , अकेले से मकान में
रात के घनघोर अंधेरों में
एक छोटे से केरोसिन के दिए की रोशनी में
भरी गर्मी में, रात बिताती थी

रेगिस्तान के तपते धोरो के
इस ओर, उस ओर बसी बस्तियों में
तवे सी जलती सबको
और भभकती हवाओं में
पल्लू से चेहरे से को बांधे हुए
छोटी सी बोतल से बीच बीच में
कुछ घूंट पानी के पीते हुए
बच्चो को पोलियो की दवा पिलाने जाती थी
हमे अच्छी जिंदगी मिले
इसीलिए, नाराज से मौसमों में भी
अपना फ़र्ज़ निभाती थी
छह दिन इसी मशक्कत के बाद
इतवार को फिर, बड़े प्यार से
हमे खाना खिलाती, दुलारती थी
हां, वो कोई और नहीं
मेरी मां थी
मेरी मां थी

One thought on “मेरी मां थी

Leave a Reply