ये इश्क़ नहीं तो क्या है

तेरी नज़रों का, उठना, उठ कर फिर गिरना
चेहरे पर गिरी जुल्फों का समेटना
कंपकपाते से होंठो से, दो लब्ज़ बोलना
चेहरे पर आती मुस्कान, को रोकना
पल्लू का, अंगुलियों में लपेटना
खोलना, और फिर लपेटना
कभी कभी, नज़रे बचाते हुए
आस पास टटोलना
माथे पर, हल्की सी शिकन
और कुछ पसीने की बूंदे
थोड़ा घबराते, थोड़ा शरमाते हुए
मुझको हैलो बोलना
मेरे बढ़ते हुए हाथो को तकना
तेरे हाथो का, हौले से हटना
फिर रुकना,
तू ही बता, ये इश्क़ नहीं तो क्या है

देव

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