ये भी इक इश्क़ था।
पांच बजने का इंतजार करना
नोटबुक के पन्नों को बेसब्री से पलटना
कब खत्म होगी क्लास,
इशारों में दोस्तो को, बताना
चेहरे पे पचास एक्सप्रेशन बनाना
होठों से गालियों का बड़बड़ाना
क्लास खत्म होते ही,
अपने हिस्से का नाश्ता
दोस्त को थमा, अहसान जता
बस स्टॉप की ओर भागना
बस में खाली सीट को हथियाना
और कोई आए तो जताना,
“भाई, ये सीट रिजर्व्ड है, कहीं और बैठ जाओ”
फिर उसके इंतजार में खो जाना
और जब वो आए, खुदा से दुआ मांगना
“ऐ खुदा, आज तो उसे, मेरे बगल में बिठाना”
हां, वो दुआ खुदा ने भी सुनी
और जब वो पहली बार मिली
मेरी बगल कि सीट पर बैठी
मुस्कुरा कर उसको वेलकम किया
जैसे, सीट नहीं, घर हो अपना
होले से हैलो कहा,
उसने भी मुस्कुरा कर रेस्पॉन्स दिया
बस भाई, यह अपनी निकल ली
ये पहली सीढ़ी है जो पार कर ली
अब तो बस बातें शुरू
हर रोज होने लगे रूबरू
इक बात तो तय है
उस भी हमारी सोहबत मंजूर है
तभी तो, जब वो पहले आ जाती थी
बगल की सीट हमारे इंतजार में रोक ली जाती थी
सिलसिला, यू ही चलता रहा
उसके चेहरे का नूर, अच्छा लगने लगा
पर, अब तो बाय कहने का वक़्त पास था
उस भी पता था, की मैं मुसाफिर हूं
उस शहर में कुछ दिनों का मेहमान था
फिर, वहीं रास्ते वहीं तन्हाइयां होंगी
बहुत दूर रहेगी वो, बस यादें होंगी
आज भी, कभी कभी याद आ जाते है वो पल
जैसे, बरसो नहीं, मिला था उससे बस में बस कल
क्या ये हाल सिर्फ मेरा है है
या दुंडती है मुझे अब भी नज़रे उसकी किसी पल
देव
Nice think