गुनाह देखने का..

बड़े तल्ख अंदाज़ से
उन्होंने नज़रे घुमाने को कहा
जैसे मुलजिम हो हम कोई
गुनाह किया उन्हें देखने का

बस, एक झलक ही तो
नजर आईं थी उनकी
काफी अरसे बाद
बस, ठिठक कर वहीं
जम गए थे हमारे कदम
नज़रे, गड़ी की गड़ी रह गई थी
और वो, अपने ही सपनों में गुम
चलती चली जा रही थी

जैसे, चार चांद एक साथ
पूनम की रात में
चांदनी बरसा रहे हो
सूरज को भी, सुबह का
इंतजार कुछ लंबा करवा रहे हो
सितारों में उनके नकाब कों
आसमा से ज्यादा चमकाया
और चंद, जो रह गए
कदमों को चूमने उनके
राहों में बिछाया
उनके चेहरे का नूर,
देखते ही बनता था
तभी तो, मेरी जुबां से
या खुदा, निकल आया

बस, वहीं उनकी तीखी
नज़रों ने मुझे भेद डाला
मुझे, सपनों की दुनिया से
खीचकर, झक झोरा

और बड़े तल्ख अंदाज़ से
उन्होंने नज़रे घुमाने को कहा
जैसे मुलजिम हो हम कोई
गुनाह किया उन्हें देखने का

देव

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